Wednesday 24 July 2013

माँ

आज सुबह हमने बोसा किया खीर का,
पर माँ के हिस्से कल रात की बासी रोटी ही आई...
ये साजिश उसी की थी, पेट काट दिया खुदका,
मन रख लिया हम बच्चों का...

शहादत का अंजाम

क्या मिला इंक़लाब से?
क्या हुआ शहादत का अंजाम!?
तुम तो बैठे हो जन्नत में!
हमें छोड़ गए हिंदुस्तान!


- चोरी, चकारी, लूट, फसाद,
हत्या, कब्ज़ा, बलात्कार,
झूट, फरेब, भ्रष्टाचार,
सब है माफ़...
और इंक़लाब ही बना यहाँ कानून अपराध!!

Tuesday 23 July 2013

बदनाम

किसने सोचा था, 'उसका' नाम इतना बदनाम बनेगा?
राम के नाम पर कटेगा सर,
अल्लाह के नाम पर बम फटेगा!

Friday 19 July 2013

मौत

ये हिज्रत भी बड़ी खुबसूरत है...
ताह उम्र जिए बदनामी में जो,
उनके जनाज़े में शानदार जुलुस निकला है...

Wednesday 17 July 2013

गंदा करो

तुम भ्रमण करो, घुमने जाओ, मौज लुटाओ, या जाओ तीर्थ स्थान,
साथ हैं सदा चिप्स, बिस्कुट, कोल्ड्रिंक, फर्सान
- पेट की मांग, जीभ का स्वाद, या बस टाइमपास!
क्यूँ बोझ उठाते हो, ट्रेवल लाइट करो, खाओ, पियो, फेको... गंदा करो।।
                               
तुम समाज की कुछ सेवा करो,
कचरा उठाने वाले बच्चों-महिलाओं को रोज़गार दो,             
मच्छर मारने की दवा उत्पादकों को धंदा दो,
डॉक्टरों की दुकाने चलाओ,
खुशाली बढाओ, राष्ट्र निर्माण करो... गंदा करो।।

तुम हो बलवान, हो शक्तिमान, दो इसका प्रमाण, झुकलाओ ना पुर्खों का नाम!
अरे! वो पुरुष ही क्या जिसने किया ही न हो सड़क किनारे पैशाब?
बाजू ना दखो, सर ऊँचा करो... गंदा करो।।

तुम पैसे बचाओ, घर ना रंगाओ,
पान खाओ, थूको, सात रूपए में करो दीवारें लाल,
घर को सुसज्जित करो, खर्चे कम करो... गंदा करो।।

तुम अमीर हो, गरीब हो?
शिक्षित हो, अशिक्षित हो?
कहता है संविधान, सब हैं एक समान!
उसपे फक्र करो, अच्छे नागरिक बनो... गंदा  करो।।

तुम ना लगाना कूड़ादान, सरकार!
कचरा है हमारी शान!
आमदनी बढाओ, विदेशी सैलानियों को बुलाओ,
अपना सुंदर गिरेबान उनको दिखाओ,
स्लम डॉग मिलियनएयर बनाओ,
देश का नाम करो, कुछ काम करो... गंदा करो।।

ये हमारा गुमान है!
इसमें क्या शर्म की बात है? 
हम भारतियों को ब्रह्म-वरदान है,
जहाँ जाओ, जहाँ चाहो, वहाँ... गंदा करो।।

मिल लीजियेगा

गर मुमकिन हो मुलाकात, मिल लीजियेगा..
गर काम न हो कुछ ख़ास, मिल लीजियेगा..
गर बेपनाह हो प्यार, मिल लीजियेगा..
गर रौशन हो विश्वास, मिल लीजियेगा..
गर उठी हो दिल में आस, मिल लीजियेगा..
गर धधकती हो सांस, मिल लीजियेगा..
गर मन हो उदास, मिल लीजियेगा..
गर नम हो मिजाज़, मिल लीजियेगा..
आपका रहेगा इंतज़ार, मिल लीजियेगा..
ना कीजियेगा निराश, मिल लीजियेगा..

Monday 15 July 2013

सत्योप्देश

जब कभी मन ने नैनों को निचोड़ा,
भावों का पानी चेहरे पे छलका...
देख के मुझे, दर्पण मुझसे बोला,
"ये मोती यूँ न गवां, चुप हो, थोडा मुस्कुरा..
जब तेरे में क्षमता, फिर क्यूँ तू उदास खड़ा..
ये श्रृष्टि का अंत नहीं, पतझड़ से यूँ ना घबरा..
तू वीर पुत्र है, 'उसका' प्रतिरूप है, उठ, कदम बढ़ा..
विजय कर अपने भय पर, उस गढ़ पर अपना ध्वज फ़हरा..
ये भ्रमांड तेरा है, ये समय तेरा दास है, आकाश पे अपना पताका लहरा.. 
इस जल से अपना भविष्य सींच, अपने पुर्वों का नाम अमर बना..
ये मोती यूँ न गवां, चुप हो, थोडा मुस्कुरा.."
जब बोझल द्रष्टि साफ़ हुई, मैंने देखा...
दर्पण दर्पण ना था, मेरा प्रतिबिम्ब मेरा ना था...
वो तो मेरा भोला, मेरा प्यारा, मेरा सखा, मेरा मित्र था...

Thursday 4 July 2013

मैं और बादल

असमंजस

ज़िन्दगी किस चौराहे पर खड़ी है?
ख़बरदार है ज़माना, नोचने को तैयार है...
न मैं जानू किस ओर मंजिल है,
न वो जाने किस ओर महफ़िल है...
इस अँधेरे में एक राह की तलाश है,
न मेरे पास चराग है,
न उनके पास भी चराग है...


अब ख्वाबों की ज़िल्लत बर्दाश्त नहीं होती,
हकीक़त की बेबसी भी बर्दाश्त नहीं होती...
ज़ख्म ऐसे के भरे नहीं ज़मानो से,
और कभी रंजिशें भी रही ज़माने से...
मेरा ग़म तो दरिया है,
ये ज़माना भी तो दरिया है...

इस ओर देखे 'एकांती', वीराना है,
उस ओर, बहारों पे पर्दा लगा है...
असमंजस में है 'एकांती',
न बंजर धरा गवारा है,
न पर्दानशीं गुलिस्तां भी गवारा है...


ये सितम ऐसा ढाया खुद खुदा ने,
ख्वाइशें पूरी कर दी लापरवाही में...
चश्म-ऐ-नूर, हया, हुस्न बक्शा यार को,
फिर यार को ही बेगाना कर दिया...
माँगा जब सुकूं तब,
ज़िन्दगी को ही बेगाना कर दिया...
अब ग़िला, ग़म, मायूसी का आलम है,
चश्म-ऐ-तर पोंछती, सिसकती सहमती, घ़बरायी साकी बाला है...
पर अब यार पराया है,
और साकी भी तो पराया है...