Tuesday, 24 September 2013

दिल ढूँढता है...

मिसरा ग़ालिब का है, पर कैफियत सबकी अपनी अपनी...

दिल ढूँढता है... फिर वही... फुर्सत के रात दिन...
मोहले की चौक पर,
गेंद, बल्ले, गालियों से,
हम-उम्र साथियों संग,
घंटो जंग लड़ते हुए...
दिल ढूँढता है... फिर वही... फुर्सत के रात दिन...
या, भोर के सफ़र में,
पांच उन्चास के पालने पर,
हम-सफरों के संग,
रोज़ाना सोते हुए...
दिल ढूँढता है... फिर वही... फुर्सत के रात दिन...
या, कॉलेज की चौखट के आगे, 
मन्नू के टीले पर सिगरेट के बादलों से ऊपर,
सुट्टेरी पंछियों के संग,
सहसा उड़ते हुए...
दिल ढूँढता है... फिर वही... फुर्सत के रात दिन...
या, आधी रातों को,
आँगन के पेड़ तले चौकी पर,
सखों, साथियों, भूतों, कुत्तों के संग,
मक्खियाँ और गप्पे मारते हुए...
दिल ढूँढता है... फिर वही... फुर्सत के रात दिन...

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