तू खींच तार सितार के,
तू राग बना मल्हार के,
धुन में तेरी झुमुं मैं,
बन बंजारा भटकू मैं।
तू वन बसा चिर के,
तू उपवन खिला कश्मीर के,
बन हिरन फिरूं मैं,
बन बंजारा भटकू मैं।
तू रंग उड़ा आकाश के,
तू चित्र बना पहाड़ के,
नीली धार बन उतरूं मैं,
बन बंजारा भटकू मैं।
तू मंदिर बना शिव के,
तू ताल बजा डमरू के,
बन जोगी तेरा नाचूं मैं,
बन बंजारा भटकू मैं।
No comments:
Post a Comment