चल निकला हूँ मैं उस सफ़र पर,
रास्ते अनजान जहाँ मंजिल बेखबर..
खो कर खुदको उस राह पर,
मैं कौन हूँ, खुदसे बेखबर...
ओढ़ लिया तुझको तन पर,
धुप-छाओं, मौसमों से बेखबर..
चढ़ गयी हाला सुध-बुद्ध पर,
मैं कौन हूँ, खुदसे बेखबर...
जोगी बन चला तेरे पंथ पर,
दोस्ती-रिश्तेदारी से बेखबर..
छाप तेरी ऐसी पड़ी रूह पर,
मैं कौन हूँ, खुदसे बेखबर...
No comments:
Post a Comment