Monday, 9 December 2013

बन बंजारा भटकू मैं

तू खींच तार सितार के,
तू राग बना मल्हार के, 
धुन में तेरी झुमुं मैं,
बन बंजारा भटकू मैं।

तू वन बसा चिर के,
तू उपवन खिला कश्मीर के,             
बन हिरन फिरूं मैं,
बन बंजारा भटकू मैं।

तू रंग उड़ा आकाश के,
तू चित्र बना पहाड़ के,
नीली धार बन उतरूं मैं,
बन बंजारा भटकू मैं।

तू मंदिर बना शिव के,
तू ताल बजा डमरू के,
बन जोगी तेरा नाचूं मैं,
बन बंजारा भटकू मैं।

Tuesday, 24 September 2013

दिल ढूँढता है...

मिसरा ग़ालिब का है, पर कैफियत सबकी अपनी अपनी...

दिल ढूँढता है... फिर वही... फुर्सत के रात दिन...
मोहले की चौक पर,
गेंद, बल्ले, गालियों से,
हम-उम्र साथियों संग,
घंटो जंग लड़ते हुए...
दिल ढूँढता है... फिर वही... फुर्सत के रात दिन...
या, भोर के सफ़र में,
पांच उन्चास के पालने पर,
हम-सफरों के संग,
रोज़ाना सोते हुए...
दिल ढूँढता है... फिर वही... फुर्सत के रात दिन...
या, कॉलेज की चौखट के आगे, 
मन्नू के टीले पर सिगरेट के बादलों से ऊपर,
सुट्टेरी पंछियों के संग,
सहसा उड़ते हुए...
दिल ढूँढता है... फिर वही... फुर्सत के रात दिन...
या, आधी रातों को,
आँगन के पेड़ तले चौकी पर,
सखों, साथियों, भूतों, कुत्तों के संग,
मक्खियाँ और गप्पे मारते हुए...
दिल ढूँढता है... फिर वही... फुर्सत के रात दिन...

Tuesday, 20 August 2013

कब तक

कब तक जमा खर्ची से काम चलेगा!?
कब तक बिना आय के खर्चा चलेगा!?
कब तक घर बेच कर घर चलेगा!?

कब तक भाई भाई को लड़ा कर परिवार चलेगा!?                  
कब तक खरीदी दोस्ती का मोह चलेगा!?
कब तक घर बेच कर घर चलेगा!?

कब तक तुम्हारा मौन व्रत चलेगा!?
कब तक स्वतंत्र भारत में दासत्व चलेगा!?
कब तक घर बेच कर घर चलेगा!?

कब तक माँ का शोषण चलेगा!?
कब तक शत्रुओं का पोषण चलेगा!?
अरे! कब तक घर बेच कर घर चलेगा!?

Wednesday, 24 July 2013

माँ

आज सुबह हमने बोसा किया खीर का,
पर माँ के हिस्से कल रात की बासी रोटी ही आई...
ये साजिश उसी की थी, पेट काट दिया खुदका,
मन रख लिया हम बच्चों का...

शहादत का अंजाम

क्या मिला इंक़लाब से?
क्या हुआ शहादत का अंजाम!?
तुम तो बैठे हो जन्नत में!
हमें छोड़ गए हिंदुस्तान!


- चोरी, चकारी, लूट, फसाद,
हत्या, कब्ज़ा, बलात्कार,
झूट, फरेब, भ्रष्टाचार,
सब है माफ़...
और इंक़लाब ही बना यहाँ कानून अपराध!!

Tuesday, 23 July 2013

बदनाम

किसने सोचा था, 'उसका' नाम इतना बदनाम बनेगा?
राम के नाम पर कटेगा सर,
अल्लाह के नाम पर बम फटेगा!

Friday, 19 July 2013

मौत

ये हिज्रत भी बड़ी खुबसूरत है...
ताह उम्र जिए बदनामी में जो,
उनके जनाज़े में शानदार जुलुस निकला है...

Wednesday, 17 July 2013

गंदा करो

तुम भ्रमण करो, घुमने जाओ, मौज लुटाओ, या जाओ तीर्थ स्थान,
साथ हैं सदा चिप्स, बिस्कुट, कोल्ड्रिंक, फर्सान
- पेट की मांग, जीभ का स्वाद, या बस टाइमपास!
क्यूँ बोझ उठाते हो, ट्रेवल लाइट करो, खाओ, पियो, फेको... गंदा करो।।
                               
तुम समाज की कुछ सेवा करो,
कचरा उठाने वाले बच्चों-महिलाओं को रोज़गार दो,             
मच्छर मारने की दवा उत्पादकों को धंदा दो,
डॉक्टरों की दुकाने चलाओ,
खुशाली बढाओ, राष्ट्र निर्माण करो... गंदा करो।।

तुम हो बलवान, हो शक्तिमान, दो इसका प्रमाण, झुकलाओ ना पुर्खों का नाम!
अरे! वो पुरुष ही क्या जिसने किया ही न हो सड़क किनारे पैशाब?
बाजू ना दखो, सर ऊँचा करो... गंदा करो।।

तुम पैसे बचाओ, घर ना रंगाओ,
पान खाओ, थूको, सात रूपए में करो दीवारें लाल,
घर को सुसज्जित करो, खर्चे कम करो... गंदा करो।।

तुम अमीर हो, गरीब हो?
शिक्षित हो, अशिक्षित हो?
कहता है संविधान, सब हैं एक समान!
उसपे फक्र करो, अच्छे नागरिक बनो... गंदा  करो।।

तुम ना लगाना कूड़ादान, सरकार!
कचरा है हमारी शान!
आमदनी बढाओ, विदेशी सैलानियों को बुलाओ,
अपना सुंदर गिरेबान उनको दिखाओ,
स्लम डॉग मिलियनएयर बनाओ,
देश का नाम करो, कुछ काम करो... गंदा करो।।

ये हमारा गुमान है!
इसमें क्या शर्म की बात है? 
हम भारतियों को ब्रह्म-वरदान है,
जहाँ जाओ, जहाँ चाहो, वहाँ... गंदा करो।।

मिल लीजियेगा

गर मुमकिन हो मुलाकात, मिल लीजियेगा..
गर काम न हो कुछ ख़ास, मिल लीजियेगा..
गर बेपनाह हो प्यार, मिल लीजियेगा..
गर रौशन हो विश्वास, मिल लीजियेगा..
गर उठी हो दिल में आस, मिल लीजियेगा..
गर धधकती हो सांस, मिल लीजियेगा..
गर मन हो उदास, मिल लीजियेगा..
गर नम हो मिजाज़, मिल लीजियेगा..
आपका रहेगा इंतज़ार, मिल लीजियेगा..
ना कीजियेगा निराश, मिल लीजियेगा..

Monday, 15 July 2013

सत्योप्देश

जब कभी मन ने नैनों को निचोड़ा,
भावों का पानी चेहरे पे छलका...
देख के मुझे, दर्पण मुझसे बोला,
"ये मोती यूँ न गवां, चुप हो, थोडा मुस्कुरा..
जब तेरे में क्षमता, फिर क्यूँ तू उदास खड़ा..
ये श्रृष्टि का अंत नहीं, पतझड़ से यूँ ना घबरा..
तू वीर पुत्र है, 'उसका' प्रतिरूप है, उठ, कदम बढ़ा..
विजय कर अपने भय पर, उस गढ़ पर अपना ध्वज फ़हरा..
ये भ्रमांड तेरा है, ये समय तेरा दास है, आकाश पे अपना पताका लहरा.. 
इस जल से अपना भविष्य सींच, अपने पुर्वों का नाम अमर बना..
ये मोती यूँ न गवां, चुप हो, थोडा मुस्कुरा.."
जब बोझल द्रष्टि साफ़ हुई, मैंने देखा...
दर्पण दर्पण ना था, मेरा प्रतिबिम्ब मेरा ना था...
वो तो मेरा भोला, मेरा प्यारा, मेरा सखा, मेरा मित्र था...

Thursday, 4 July 2013

मैं और बादल

असमंजस

ज़िन्दगी किस चौराहे पर खड़ी है?
ख़बरदार है ज़माना, नोचने को तैयार है...
न मैं जानू किस ओर मंजिल है,
न वो जाने किस ओर महफ़िल है...
इस अँधेरे में एक राह की तलाश है,
न मेरे पास चराग है,
न उनके पास भी चराग है...


अब ख्वाबों की ज़िल्लत बर्दाश्त नहीं होती,
हकीक़त की बेबसी भी बर्दाश्त नहीं होती...
ज़ख्म ऐसे के भरे नहीं ज़मानो से,
और कभी रंजिशें भी रही ज़माने से...
मेरा ग़म तो दरिया है,
ये ज़माना भी तो दरिया है...

इस ओर देखे 'एकांती', वीराना है,
उस ओर, बहारों पे पर्दा लगा है...
असमंजस में है 'एकांती',
न बंजर धरा गवारा है,
न पर्दानशीं गुलिस्तां भी गवारा है...


ये सितम ऐसा ढाया खुद खुदा ने,
ख्वाइशें पूरी कर दी लापरवाही में...
चश्म-ऐ-नूर, हया, हुस्न बक्शा यार को,
फिर यार को ही बेगाना कर दिया...
माँगा जब सुकूं तब,
ज़िन्दगी को ही बेगाना कर दिया...
अब ग़िला, ग़म, मायूसी का आलम है,
चश्म-ऐ-तर पोंछती, सिसकती सहमती, घ़बरायी साकी बाला है...
पर अब यार पराया है,
और साकी भी तो पराया है...

Wednesday, 13 March 2013

Sweet encounters with a stranger.

There are times, not frequent though, when you come across people and with just one look, you respect them. They're so pure that even looking at them would dirty them and you dare not disrespect them by giving a second look. I've experienced this a couple of times.. The following incident is when this one look extended to a few encounters in couple of days.
December the 25th, 2012, Christmas Day, a pure day, a pure, holy location, on the bank of the Ganges..
She, a foreigner, was present at the daily ritual, the aarti of the holy Ganga, at an aashram in Rishikesh, Uttrakhand, India. Sitting the indian style on the marble platform, facing the pyre. She was as much at peace as the holy river. Her face radiating purity, peace, tranquility. She commanded respect. She was beautiful. The smile on her face was at prefect sync. with the chants of hymns and the rolling of the river. The red of her cheeks were enough to give warmth in that chill.
After the ritual, when people started to move out of the GHAT (River bank), this group of foreigners, which she was a part of, attracted the crowds' attention, whites still attract attention in india, rural india. After that monkey dance, I went to ask them to excuse us. Had a small chat with the lady. Got to know that she's an Ukrainian and how much she loves india and it's culture and i reverted how difficult it is to be an indian. We spoke for ten minutes amidst the sounds of humanity, humanity on microphones, the river, the air. We left after that.
I encountered her a couple of times again and each time, i was flushed with delight...
27th morning, time to depart. Leaving with a constant thought to see her before leaving. And i did see her, bade goodbye.
It was great time, beautiful time. With no regrets.
I didn't ask her name. I didn't desperately tried talking to her. We had beautiful encounters.Sweet encounters.
Looking back.. I smile.. These sweet encounters with a stranger are registered as one of the most beautiful incidents that has happend to me.