तुम भ्रमण करो, घुमने जाओ, मौज लुटाओ, या जाओ तीर्थ स्थान,
साथ हैं सदा चिप्स, बिस्कुट, कोल्ड्रिंक, फर्सान
- पेट की मांग, जीभ का स्वाद, या बस टाइमपास!
क्यूँ बोझ उठाते हो, ट्रेवल लाइट करो, खाओ, पियो, फेको... गंदा करो।।
तुम समाज की कुछ सेवा करो,
कचरा उठाने वाले बच्चों-महिलाओं को रोज़गार दो,
मच्छर मारने की दवा उत्पादकों को धंदा दो,
डॉक्टरों की दुकाने चलाओ,
खुशाली बढाओ, राष्ट्र निर्माण करो... गंदा करो।।
तुम हो बलवान, हो शक्तिमान, दो इसका प्रमाण, झुकलाओ ना पुर्खों का नाम!
अरे! वो पुरुष ही क्या जिसने किया ही न हो सड़क किनारे पैशाब?
बाजू ना दखो, सर ऊँचा करो... गंदा करो।।
तुम पैसे बचाओ, घर ना रंगाओ,
पान खाओ, थूको, सात रूपए में करो दीवारें लाल,
घर को सुसज्जित करो, खर्चे कम करो... गंदा करो।।
तुम अमीर हो, गरीब हो?
शिक्षित हो, अशिक्षित हो?
कहता है संविधान, सब हैं एक समान!
उसपे फक्र करो, अच्छे नागरिक बनो... गंदा करो।।
तुम ना लगाना कूड़ादान, सरकार!
कचरा है हमारी शान!
आमदनी बढाओ, विदेशी सैलानियों को बुलाओ,
अपना सुंदर गिरेबान उनको दिखाओ,
स्लम डॉग मिलियनएयर बनाओ,
देश का नाम करो, कुछ काम करो... गंदा करो।।
ये हमारा गुमान है!
इसमें क्या शर्म की बात है?
हम भारतियों को ब्रह्म-वरदान है,
जहाँ जाओ, जहाँ चाहो, वहाँ... गंदा करो।।