Monday 17 September 2018

Single Anthem


Jo chhod gayi wo ho rahi hai mingle,
ek main hich sala reh gaya single,
School me firta tha ban k main cool dude,
bhaav na deta tha kisiko, tha thoda rude,
ek thi crush jisse baat na ki thi kabhi,
par thi wo meri item jaante the sabhi,
school ke last day me likha tha use love letter,
wo aayi hi nahi us din, fek diya chitti ko fad kar,

Jo chhod gayi wo ho rahi hai mingle,
ek main hich sala reh gaya single,
College mein jab aaya tab finally mili ek bandi,
uske peeche bhool gaya sab, bhuk-pyas, garmi-thandi,
dost yaar gaali dete, social life ki wat laga di,
maine uske saath life ki planning bana di,
sab kuch kiya maine uspar nyochawar,
usne return gift diya whatsapp pe block karwa kar,

Jo chhod gayi wo ho rahi hai mingle,
ek main hich sala reh gaya single,
Ab langoor bhi pee rahe hai angoor ka juice,
muje bhagwan ne bola le guthli choos,
maana shakal apni hai thodi si buri,
par chuhe bhi to ban rahe hai aaj kal sher-shah-suri,
office me din guzarte hai apni roz marwakar,
aur raat guzarti hai Netflix-Prime dekh dekh kar,

Jo chhod gayi wo ho rahi hai mingle,
ek main hich sala reh gaya single…

Monday 10 September 2018

आलम

क्या नीयत है क्या है नीयति,
ना साथ गवारा है ना दूरी,
कभी मिल के बिछड़े, कभी बिछड़ के मिले,
ना अपनी हो सकी तुम ना परायी...

मोहब्बत तो बेपनाह थी,
शिकायतें भी कम ना थी,
आग और पानी के खेल में,
अपनी ज़िन्दगी दाँव पर थी....

अब आलम यूँ है, 'एकांती',
ना सुकून बचा है ना खुशहाली,
सूनी शाम है और टूटा चिराग,
ना रंग बचे हैं ना रौशनी...

~ श्रेयांस जैन (एकांती)

Friday 10 August 2018

रुबाई

आज फिर हाथ में कलम है,
ज़हन में अधूरी सी नज़्म है,
कागज़ है संगमरमर सा,
मैं संगतराश, और तेरी यादों की बज़्म है...

तेरा सजदा मेरी इबादत है,
जहाँ में मुकद्दस फक्त मुहब्बत है,
और फिज़ा में बह रही खुश्बू - ए - इश्क,
वफा की ज़मानत मेरी रूबाइयत है...

मिली थी फिर तुमसे जो सौगात,
थी वह तुझसे आखिरी मुलाकात,
समझा जिसे था तेरा प्यार,
वह तो थी सिर्फ तेरी खैरात...

~ श्रेयांस जैन (एकांती)

Tuesday 4 August 2015

मैं कवी नहीं हूँ

मैं कवी नहीं हूँ,
कभी कभी कुछ भाव, शब्दों के अभाव में,
टूटी फूटी पंक्तियों में कागज़ पर उतरते हैं,
तो वो कविता नहिं कहलाते...
वो भाव, वो शब्द मेरे साथ नहीं रहते,
कभी जाड़ों की रातों में यूँ ही रजाई की तरह मुझे घेर लेतें है,
या कभी भीड़ में भी जब एकांत से भेंट होती है, तब किसी पुराने साथी की तरह मेरा हाथ मिला लेतें हैं...
जी नहीं! मैं कवी नहीं हूँ...
मैं कवी नहीं हूँ,
मेरे भाव कोई चित्र नहीं कि ठहर जाएँ, कोई उन्हें समझ सके,
वे तो सिगरेट के धुंए की तरह है, जो नसों से दौड़ते हुए आते हैं और हवा में कहीं खो जाते हैं...
मेरे शब्द साधारण हैं, इनमे न कोई अलंकार है,
ना ही ये व्याकरण के फ़िल्टर से छन्न के आते हैं...
जी नहीं! मैं कवी नहीं हूँ...
मैं कवी नहीं हूँ,
मेरी पंक्तियाँ एक कथा बखान्ति है,
जिसका न सर है, न पैर; न दिशा है, न लक्ष्य...
जब भावों की स्कॉच अधड़ों से सीने को आग लगाती है,
तब लड़खड़ाती हुई कुछ पंक्तियां कागज़ पर उतर जाती है...
जी नहीं! मैं कवी नहीं हूँ...

Tuesday 3 June 2014

बेखबर

चल निकला हूँ मैं उस सफ़र पर,
रास्ते अनजान जहाँ मंजिल बेखबर..
खो कर खुदको उस राह पर,
मैं कौन हूँ, खुदसे बेखबर...

ओढ़ लिया तुझको तन पर,
धुप-छाओं, मौसमों से बेखबर..
चढ़ गयी हाला सुध-बुद्ध पर,
मैं कौन हूँ, खुदसे बेखबर...

जोगी बन चला तेरे पंथ पर,
दोस्ती-रिश्तेदारी से बेखबर..
छाप तेरी ऐसी पड़ी रूह पर,
मैं कौन हूँ, खुदसे बेखबर...

Monday 9 December 2013

बन बंजारा भटकू मैं

तू खींच तार सितार के,
तू राग बना मल्हार के, 
धुन में तेरी झुमुं मैं,
बन बंजारा भटकू मैं।

तू वन बसा चिर के,
तू उपवन खिला कश्मीर के,             
बन हिरन फिरूं मैं,
बन बंजारा भटकू मैं।

तू रंग उड़ा आकाश के,
तू चित्र बना पहाड़ के,
नीली धार बन उतरूं मैं,
बन बंजारा भटकू मैं।

तू मंदिर बना शिव के,
तू ताल बजा डमरू के,
बन जोगी तेरा नाचूं मैं,
बन बंजारा भटकू मैं।