Friday 10 August 2018

रुबाई

आज फिर हाथ में कलम है,
ज़हन में अधूरी सी नज़्म है,
कागज़ है संगमरमर सा,
मैं संगतराश, और तेरी यादों की बज़्म है...

तेरा सजदा मेरी इबादत है,
जहाँ में मुकद्दस फक्त मुहब्बत है,
और फिज़ा में बह रही खुश्बू - ए - इश्क,
वफा की ज़मानत मेरी रूबाइयत है...

मिली थी फिर तुमसे जो सौगात,
थी वह तुझसे आखिरी मुलाकात,
समझा जिसे था तेरा प्यार,
वह तो थी सिर्फ तेरी खैरात...

~ श्रेयांस जैन (एकांती)