Tuesday, 24 September 2013

दिल ढूँढता है...

मिसरा ग़ालिब का है, पर कैफियत सबकी अपनी अपनी...

दिल ढूँढता है... फिर वही... फुर्सत के रात दिन...
मोहले की चौक पर,
गेंद, बल्ले, गालियों से,
हम-उम्र साथियों संग,
घंटो जंग लड़ते हुए...
दिल ढूँढता है... फिर वही... फुर्सत के रात दिन...
या, भोर के सफ़र में,
पांच उन्चास के पालने पर,
हम-सफरों के संग,
रोज़ाना सोते हुए...
दिल ढूँढता है... फिर वही... फुर्सत के रात दिन...
या, कॉलेज की चौखट के आगे, 
मन्नू के टीले पर सिगरेट के बादलों से ऊपर,
सुट्टेरी पंछियों के संग,
सहसा उड़ते हुए...
दिल ढूँढता है... फिर वही... फुर्सत के रात दिन...
या, आधी रातों को,
आँगन के पेड़ तले चौकी पर,
सखों, साथियों, भूतों, कुत्तों के संग,
मक्खियाँ और गप्पे मारते हुए...
दिल ढूँढता है... फिर वही... फुर्सत के रात दिन...

Tuesday, 20 August 2013

कब तक

कब तक जमा खर्ची से काम चलेगा!?
कब तक बिना आय के खर्चा चलेगा!?
कब तक घर बेच कर घर चलेगा!?

कब तक भाई भाई को लड़ा कर परिवार चलेगा!?                  
कब तक खरीदी दोस्ती का मोह चलेगा!?
कब तक घर बेच कर घर चलेगा!?

कब तक तुम्हारा मौन व्रत चलेगा!?
कब तक स्वतंत्र भारत में दासत्व चलेगा!?
कब तक घर बेच कर घर चलेगा!?

कब तक माँ का शोषण चलेगा!?
कब तक शत्रुओं का पोषण चलेगा!?
अरे! कब तक घर बेच कर घर चलेगा!?

Wednesday, 24 July 2013

माँ

आज सुबह हमने बोसा किया खीर का,
पर माँ के हिस्से कल रात की बासी रोटी ही आई...
ये साजिश उसी की थी, पेट काट दिया खुदका,
मन रख लिया हम बच्चों का...

शहादत का अंजाम

क्या मिला इंक़लाब से?
क्या हुआ शहादत का अंजाम!?
तुम तो बैठे हो जन्नत में!
हमें छोड़ गए हिंदुस्तान!


- चोरी, चकारी, लूट, फसाद,
हत्या, कब्ज़ा, बलात्कार,
झूट, फरेब, भ्रष्टाचार,
सब है माफ़...
और इंक़लाब ही बना यहाँ कानून अपराध!!

Tuesday, 23 July 2013

बदनाम

किसने सोचा था, 'उसका' नाम इतना बदनाम बनेगा?
राम के नाम पर कटेगा सर,
अल्लाह के नाम पर बम फटेगा!

Friday, 19 July 2013

मौत

ये हिज्रत भी बड़ी खुबसूरत है...
ताह उम्र जिए बदनामी में जो,
उनके जनाज़े में शानदार जुलुस निकला है...

Wednesday, 17 July 2013

गंदा करो

तुम भ्रमण करो, घुमने जाओ, मौज लुटाओ, या जाओ तीर्थ स्थान,
साथ हैं सदा चिप्स, बिस्कुट, कोल्ड्रिंक, फर्सान
- पेट की मांग, जीभ का स्वाद, या बस टाइमपास!
क्यूँ बोझ उठाते हो, ट्रेवल लाइट करो, खाओ, पियो, फेको... गंदा करो।।
                               
तुम समाज की कुछ सेवा करो,
कचरा उठाने वाले बच्चों-महिलाओं को रोज़गार दो,             
मच्छर मारने की दवा उत्पादकों को धंदा दो,
डॉक्टरों की दुकाने चलाओ,
खुशाली बढाओ, राष्ट्र निर्माण करो... गंदा करो।।

तुम हो बलवान, हो शक्तिमान, दो इसका प्रमाण, झुकलाओ ना पुर्खों का नाम!
अरे! वो पुरुष ही क्या जिसने किया ही न हो सड़क किनारे पैशाब?
बाजू ना दखो, सर ऊँचा करो... गंदा करो।।

तुम पैसे बचाओ, घर ना रंगाओ,
पान खाओ, थूको, सात रूपए में करो दीवारें लाल,
घर को सुसज्जित करो, खर्चे कम करो... गंदा करो।।

तुम अमीर हो, गरीब हो?
शिक्षित हो, अशिक्षित हो?
कहता है संविधान, सब हैं एक समान!
उसपे फक्र करो, अच्छे नागरिक बनो... गंदा  करो।।

तुम ना लगाना कूड़ादान, सरकार!
कचरा है हमारी शान!
आमदनी बढाओ, विदेशी सैलानियों को बुलाओ,
अपना सुंदर गिरेबान उनको दिखाओ,
स्लम डॉग मिलियनएयर बनाओ,
देश का नाम करो, कुछ काम करो... गंदा करो।।

ये हमारा गुमान है!
इसमें क्या शर्म की बात है? 
हम भारतियों को ब्रह्म-वरदान है,
जहाँ जाओ, जहाँ चाहो, वहाँ... गंदा करो।।